जल ही जीवन है जल हे तो कल है इसके मोल को समझें : साध्वी प्रियदर्शना ‘ प्रियदा
जल ही जीवन है. प्राणी मात्र का जीवन जल पर ही आधारित है। जल है तो जीवन है, जीवन है तो सृष्टि है। जल शुध्दि, तृप्ति, शांति और शीतलता प्रदान करता है। अगर जल तत्व नहीं होता तो जीव सृष्टि का अस्तित्व ही नहीं रहता। अतः जल सुरक्षा जीवन रक्षा है। एक लोटा पानी का मुल्य पूरी सत्ता और सम्पति को समर्पित करके भी नहीं चुकाया जा सकता। विशाल धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए महा साध्वी श्री प्रियदर्शनाश्री जी ‘प्रियदा’ ने कहा- एक राजा जंगल में अकेला भटक गया, वह प्यास से व्याकुल होकर तड़पने लगा, वृक्ष पर थे चढ़ कर देखा तो उसे एक झोपडी दिलाई दी। थोडी आस बंधी यह उसी दिशा में चल पड़ा. झोपड़ी में एक व्यक्ति दिखाई दिया, राजा ने पूछा- भाई प्यास के मारे मेरे प्राण कंठ तक आ गये हैं, तुम मेरा संपूर्ण राज्य से लो. एक लोटा पानी दे दो। उस व्यक्ति ने शुद्ध शीतल जल कर लोटा हाथ में थमाया राजा एक ही सांस में सारा जल भी गया। राजा ने कहा- भाई तुमने मुझे जलदान ही नहीं प्रण दान भी दिये हैं। मैं सारी जिंदगी तुम्हारी सेवा करता रहूं तब भी इस एक लोटे पानी का मुल्य नहीं चुका सकता। तुम मेरे राज्य में आना, तुम्हे मुंह मांगा इनाम मिलेगा।
साध्वी जी ने वर्तमान के जल संकट समस्या पर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा पीने के शुद्ध जल की आज भी समस्या है। फैक्ट्री, गंदगी से जल प्रदूषण बढ़ रहा है। जल का अपव्यय इसी तरह होता रहा तो गंदी नालियों के पानी को साफ करके पीने की नौबत आ सकती है। महात्मा गांधी बहुत थोड़े से जल से स्नान कर लेते थे। कपड़े भी बहुत थोडे पानी से धोते थे। पानी की कीमत घी से भी अधिक है। घी खाये बिना मनुष्य जी सकता है, किंतु पानी के अभाव में जीवन टिकना कठिन ही नहीं असम्भव है। जल वैज्ञानिकों का कहना है यदि जल के अपव्यय पर हर व्यक्ति ध्यान नहीं देगा तो केवल राजस्थान को ही नहीं हर प्रांत के हर व्यक्ति को जल संकट का सामना करना पड़ेगा. 1 एक व्यक्ति नल के नीचे घंटे भर तक बैठा रहा, स्नान एक बाल्टी पानी से हो सकता था दस बाल्टी पानी व्यर्थ बहा दिया। यह प्रवृतिकटि संतुलन दोनों ही ठीक नहीं है जब थोड़े से काम चल सकता है तो अधिक व्यय क्यों किया जाय। अहिंसा प्रेमी व्यक्ति आवश्यकता से अधिक उपयोग नहीं करता तथा आवश्यकताओं को भी सीमित करता है। जैन साधू-साध्वी तो जीवन भर अस्नान व्रत का पालन करते हैं। कई भाई बहन भी पांचों तिथियों को स्नान नहीं करने का नियम ग्रहण कर लेते हैं।
पानी का विवेक करके असंख्य जीवों को अभयदान किया जा सकता है। एक सद्गृहस्थ के घर में बहुरानी ने एक बाल्टी पानी व्यर्थ गिराने पर क्रोध किया और घी गिर जाने पर एक शब्द भी नहीं कहा, यह अपकाय पानी के जीवों के प्रति दयाभाव है। रात्रि में सोने से पहले या घर से बाहर जाते समय नल की सारी टूटियों चेक कर लेना चाहिए।
भगवान महावीर ने फरमाया है पानी की एक बूंद में असंख्य जीव होते हैं, यदि वे सभी जीव भौरे के समान रूप धारण कर लें तो इस लाख योजन के जंबू द्वीप में नहीं समा सकेंगे। अतः पानी के उपयोग में विवेक जरूरी है। डॉ जगदीशचंद्र ने माईक्रोस्कोप में पानी एक बूंद में 36450 चलते फिरते जीव देखे हैं। ये बस जीव हैं, अतः अनछाना पानी बिलकुल नहीं पीना चाहिये।
पानी में अनेक विषले कृमि होते हैं, वे पेट में चले जाए तो जलोदर आदि अनेक रोग हो सकते हैं। विश्व आरोग्य संगठन की वार्षिक रिपोर्ट में बताया गया है कि अनघाना पानी पीने से प्रतिवर्ष 50 लाख लोग मरते हैं।
एक लड़की ने झरने का अनछाना पानी पी लिया उसके पेट में भयंकर दर्द रहने लगा। डॉ. ने आपरेशन करके सांप के सात बजे निकाले। अनघाना पानी पीने का यह दुष्परिणाम है। अतः आज और अभी संकल्प करें पानी छानकर पीएंगे और पानी का दुरुपयोग नहीं करेंगे।
“पानी के जीवों की रक्षा करना , वही मानव का धर्म है।
जल बिन जीवन सूना है,
समझो जिनवाणी का मर्म है