मनुष्य जन्म अनमोल, त्याग तपस्या व साधना से खुलते मोक्ष के द्वार-हरीशमुनिजी म.सा.
पुण्यशाली आत्माओं की संगत से जीवन बनता पावन- सचिनमुनिजी म.सा.
अम्बाजी के अंबिका जैन भवन में पूज्य मुकेशमुनिजी के सानिध्य में चातुर्मासिक प्रवचन
अम्बाजी, 28 जुलाई। जीवन में संगत का बहुत महत्व है जिसका असर हम साफ महसूस कर सकते है। अच्छी संगत से सद्गुण एवं बुरी संगत से दुुर्गुणों की प्राप्ति होती है। हम जैसी संगत करेंगे वैसे ही गुण हमे प्राप्त होंगे। संतों व महात्माओं की संगत करने से जीवन पवित्र व पावन बनता है। ये विचार रविवार को पूज्य दादा गुरूदेव मरूधर केसरी मिश्रीमलजी म.सा., लोकमान्य संत, शेरे राजस्थान, वरिष्ठ प्रवर्तक पूज्य गुरूदेव श्रीरूपचंदजी म.सा. के शिष्य, मरूधरा भूषण, शासन गौरव, प्रवर्तक पूज्य गुरूदेव श्री सुकन मुनिजी म.सा. के आज्ञानुवर्ती युवा तपस्वी श्री मुकेश मुनिजी म.सा के सानिध्य में श्री अरिहन्त जैन श्रावक संघ अम्बाजी के तत्वावधान में अंबिका जैन भवन आयोजित चातुर्मासिक प्रवचन में सेवारत्न हरीशमुनिजी म.सा. ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि व्यक्ति सामान्यत बुराई जल्दी सीख लेता है जबकि अच्छाई को अंगीकार करने में समय लगता है। अच्छी संगत बुरे से बुरे व्यक्ति को भी भवसागर से तार सकती है। गलत संगत में रहने पर धर्मवान व्यक्ति भी पथभ्रष्ट हो सकता है। हमेशा गलत संगत से बचना हमारा लक्ष्य होना चाहिए। धर्मसभा में मधुर व्याख्यानी श्री हितेश मुनिजी म.सा. ने जीवन में सत्संग के महत्व की चर्चा करते हुए कहा कि सत्संग करने से बुरे से बुरा व्यक्ति भी गलत आदतों का त्याग कर सकता है। सत्संग के समय व्यक्ति पाप कर्म से दूर रहता है पुण्यार्जन करता है। सत्संग में रहने वाला पाप करने से कतराएगा। अच्छी संगत का असर जीवन में भी आता है ओर व्यक्ति गलत कार्य करने से बचने लगता है। उन्होंने सुखविपाक सूत्र का वाचन करते हुए कहा कि भगवान महावीर की देशना सुनने का असर सुबाहुकुमार के जीवन पर भी आता है ओर वह अधिकाधिक त्याग, तपस्या व नियमों की पालना करने लगता है। धर्मसभा में प्रार्थनार्थी श्री सचिनमुनिजी म.सा. ने कहा कि पुण्यशाली आत्माओं की संगत से जीवन निर्मल व पावन बनता है। हमेशा पापियों से दूर रहकर पुण्यात्माओं के मध्य समय बिताना चाहिए। सत्संग हर किसी प्राणी के भाग्य में नहीं होता। अनंत पुण्यशाली आत्माओं को सत्संग का लाभ मिल पाता है। सत्संग जीवन को पावन बनाता है और सत्संग से मन के मैल धुलते हैं। उन्होंने कहा कि सत्संगी व्यक्ति मन पर नियंत्रण की कला को भी भली भाँति समझ सकता है क्योंकि सत्संग सत्य बात का उद्घोष और परमात्मा के श्री मुख से निकली हुई ज्ञान गंगा से पवित्र बनाने की ताकत रखता है।धर्मसभा में युवारत्न श्री नानेशमुनिजी म.सा. का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। अतिथियों का स्वागत श्रीसंघ के द्वारा किया गया। धर्मसभा का संचालन गौतमचंद बाफना ने किया। चातुर्मासिक नियमित प्रवचन सुबह 9 से 10 बजे तक हो रहे है।
चातुर्मास में प्रवाहित हो रही तप त्याय की धारा,धार्मिक प्रतियोगिता
चातुर्मास में मुनिवृन्द की प्रेरणा से तप त्याग की धारा भी निरन्तर प्रवाहित हो रही है। धर्मसभा में रविवार को सुश्रावक पवनकुमार मादरेचा ने 9 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किए तो हर्ष-हर्ष की वाणी गूंज उठी ओर सभी ने तप की अनुमोदना की। कई श्रावक-श्राविकाओं ने आयम्बिल, एकासन, उपवास तप के प्रत्याख्यान भी लिए। रविवार को सामूहिक दया भी हुई उसमे कई श्रावक-श्राविकाओं ने भाग लिया। दोपहर 2.30 से 4 बजे तक पूज्य हितेश मुनिजी के निर्देशन में धार्मिक प्रतियोगिता के तहत 64 श्लांधनीय पुरूषों के नाम पर प्रश्नपत्र प्रतियोगिता हुई। चातुर्मास अवधि में प्रतिदिन दोपहर 2 से 4 बजे तक धर्मचर्चा हो रही हैं।