आमेट के जैन स्थानक मे
जैन साध्वी विनीत रूप प्रज्ञा ने कहा
जैन धर्म के अनुसार हर आत्मा का असली स्वभाव भगवंता है और हर आत्मा में अनंत दर्शन, अनंत शक्ति, अनंत ज्ञान और अनंत सुख है। आत्मा और कर्म पुद्गल के बंधन के कारण यह गुण प्रकट नहीं हो पाते। सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान, सम्यक् चरित्र के माध्यम से आत्मा के इस राज्य को प्राप्त किया जा सकता है।
साध्वी चंदन बाला जी के प्रेरक उद्बोधन
जैन दर्शन में भगवान न कर्ता और न ही भोक्ता माने जाते हैं। जैन दर्शन मे सृष्टिकर्ता को कोई स्थान नहीं दिया गया है। जैन धर्म में अनेक शासन देवी-देवता हैं पर उनकी आराधना को कोई विशेष महत्व नहीं दिया जाता। जैन धर्म में तीर्थंकरों जिन्हें जिनदेव, जिनेन्द्र या वीतराग भगवान कहा जाता है इनकी आराधना का ही विशेष महत्व है।
साध्वी आनन्द प्रभा ने कहा
जैन धर्म क्या है? ‘जैन धर्म’ का अर्थ है – ‘जिन द्वारा प्रवर्तित धर्म’ । जिन अर्थात् जिन्होंने राग-द्वेष को जीत लिया है│ जैन दर्शन के अनुसार प्रत्येक आत्मा स्वयं से, परमात्मा से साक्षात्कार कर सकती है और जन्म-मृत्यु के अंतहीन सिलसिले से मुक्ति पा सकती है ।
कार्यक्रम का संचालन ललित जी ने किया बाहर से पधारे हुए सूरत, बेंगलुरु ,से आए गुरु भक्तों का स्वागत श्री संघ ने शाल माला पहनाकर किया