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युवाचार्य भगवन के सानिध्य में आनंद जन्मोत्सव का तीसरा दिन हर्ष और उल्लास के वातावरण में हो रहे आयोजन - Jinshashansandesh
December 23, 2024

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युवाचार्य भगवन के सानिध्य में आनंद जन्मोत्सव का तीसरा दिन हर्ष और उल्लास के वातावरण में हो रहे आयोजन

शिक्षण के साथ प्रशिक्षण भी अत्यंत आवश्यक : युवा श्रीाचार्य ऋषि जी 

31 जुलाई चेन्नेई। शिक्षण के साथ प्रशिक्षण भी आवश्यक है। रविवार को एम्सकेम जैन मेमोरियल सेंटर में नौ दिवसीय आनंद जन्मोत्सव के चतुर्थ दिवस विशाल प्रवचन धर्मसभा में श्रमणसंघीय युवााचार्य महेंद्र ऋषि महाराज ने कहा कि आचार्य आनंद ऋषिजी व्यक्ति नहीं, शक्ति थे। उन्होंने प्रवचन के बाद ज्ञान साधना की शुरुआत की। न्याय, दर्शन, साहित्य का अध्ययन किया। रत्न ऋषि महाराज से वे साकेतिक ज्ञान सिद्धांत। उन्होंने कहा कि शिक्षा के साथ प्रशिक्षण भी जरूरी है। गुरु जो भी शिक्षा देते थे, शिष्य उनकी कोई शिकन तक नहीं लाते थे। ऐसा प्रशिक्षण होना चाहिए। गुरुदेव को पता था कि आनंद ऋषि ने बिजली घर बनाया है। छन्नी पर हथौड़ी की मार सहन करने वाला ही मजबूत पत्थर होता है। उन्होंने कहा कि जब तक आप विजय प्राप्त नहीं कर सकते, हम हमारे शत्रु हैं। स्वयं को अज्ञात ही कषायों व इन्द्रियों पर विजय पा सकते हैं। अगर हमने किसी को बाहरी शत्रु माना है तो उसमें हमारे अंदर के द्वेष का भाव आता है। उस भाव के साथ हम बंध जाते हैं। ‍व्यक्ति सिर्फ राग की डोर से ही नहीं बंधता, द्वेष भी एक मजबूत हथकड़ी है। वे सनातनी हमारे जन्म मरण रहते हैं। शास्त्रकार कहते हैं केवल एक हम स्वयं को जीत लेते हैं तो अन्य कषाय आप नष्ट हो जाएंगे।


उन्होंने कहा कि मुंडन 10 प्रकार के होते हैं, 5 इंद्रियां, 4 कषाय और एक मन का मुंडन होता है। मन को हमें जीतना है। उन्होंने कहा कि सारेगामा के लिए संगीत सीखना जरूरी है। आनंद ऋषि जी के मुख से कभी फिल्मी राग का काव्य पाठ नहीं हुआ। यदि सामने वाला व्यक्ति आशा में हो तो कुछ समय के लिए उसे छोड़ दें। बड़ों से आज्ञा के बिना कोई कार्य नहीं करना। एक छोटी सी चीज भी हमारे यहां हाथ से बांधने वाला अट्टादान यानी चोरी चोरी है। जो परिवारवाद पर निंदा करता है, वह अपने पूर्वजों पर ले जाता है तो मोहनीय कर्म का बंधन करता है। उन्होंने कहा कि बच्चों को महत्व देना महत्वपूर्ण नहीं है, उनका भविष्य महत्वपूर्ण है। जहां जरूरत है, वहां आपको बात कहानी आनी चाहिए। प्रशिक्षण में स्टॉक होना जरूरी है लेकिन उसे कोचिंग जैसी होनी चाहिए। रत्न ऋषि महाराज अंदर से नर और बाहर से कठोर दिखाई देते थे। आनंद ऋषिजी ने ली पांचों तिथियों को एकसना, आयंबिल करने का संकल्प लिया। वह महापुरुषों का स्मरण करते हैं तो हमारा रोम-रोम रोमित हो जाता है। जैन कैथेड्रल के संस्थापक धर्मीचंद सिघांवी ने कहा कि सागर डोंबिवली कल्याण श्री संघ के अध्यक्ष बंसीलाल चपलोत, श्याम कागरेचा, धर्मेंद्र मादरेचा, नरेंद्र राजावत, मनोहर बड़ाला, राजू कोठारी, राजेश सियानल, अनमोल नाहर, दिलीप कच्छारा आदि व्यापारियों की धर्मसभा में बढ़ती भव्य चातुर्मास प्रशस्ति समागम पधारने की युवाचार्य अध्यक्ष ऋषि जी विनती राय। महामंत्र नवकार जाप के अतिथि देवराज लूणावत परिवार थे। धर्मसभा का संचालन कमल छल्लाणी ने किया।

 

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