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आचार्य आनंद ऋषि का लक्ष्य ज्ञान को सबमें बांटना रहता था : युवाचार्य महेंद्र ऋषि - Jinshashansandesh
December 23, 2024

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आचार्य आनंद ऋषि का लक्ष्य ज्ञान को सबमें बांटना रहता था : युवाचार्य महेंद्र ऋषि

आचार्य आनंद ऋषि का लक्ष्य ज्ञान को सबमें बाँटना रहता था : युवााचार्य महेंद्र ऋषि

एम्सकेएम में नव दिव्य आनंद जन्मोत्सव का पंचम दिवस..

1 अगस्त चेन्नेई। एम्सकेएम जैन मेमोरियल सेंटर में चातुर्मासार्थ विराजित श्रमण संघीय युवााचार्य महेंद्र ऋषि महाराज ने नव दिव्य आनंद जन्मोत्सव के पंचम दिवस गुरुवार को विशाल धर्मसभा में श्रद्धालुओं को दर्शन देते हुए कहा कि आचार्य आनंद ऋषिजी में करुणा के भाव का कूट-कूट कर रखे थे। उनके ज्ञान साधना का लक्ष्य रही हुई करुणा के प्रकटीकरण में था। वास्तविकता में उनका ज्ञान और ज्ञानियों के प्रति अहोभाव जगा। ऐसे ज्ञान में आगे बढ़ने की क्षमता रहती है। विपरित रेनॉल्डिया में भी उन्होंने अपनी ज्ञान साधना को आगे बढ़ाया। ज्ञान के प्रति लग्न तपस्या, साधना है। उनका एक सूत्र था जो करना है, लगन से करना, सिद्धांत हुए मत करो। ज्ञान के लग्न की वे तल्लीनता से साधना की। उनके स्वरों में मधुरता थी। उनके प्रवचन बहुत ही अद्भुत और सरल होते थे। वे जिस विषय से आरंभ करते थे, अंत उसी विषय के अनुकूल करते थे।


उन्होंने कहा कि शास्त्रकार कहते हैं कि वे भी अज्ञानी जीव हैं, वे सभी दुःख का अनुभव कर रहे हैं, दुःख पैदा कर रहे हैं और दुःख में जी रहे हैं। दुनिया को धोखेबाज की उपमा दी गई है। जिसने धर्म को पकड़ लिया है, वह तिर जाता है। सारा संसार जागते हुए भी पीड़ा पा रहा है। उन्होंने कहा हमारे यहां तीन तत्व हैं देव, गुरु और धर्म। देव अरिहंत भगवान हैं। गुरु साधु- जीवात्मा और धर्म दयामय है। हमारी आत्मा के दर्शनगुण देव हैं, ज्ञानगुण गुरु हैं। आनंद ऋषि जी ज्ञान की महत्वपूर्ण जानकारी। उनका लक्ष्य ज्ञान को सबमें बाँटना था। उनके प्रवचनों में कबीर, तुलसीदास के पद थे। विभिन्न धर्मों और समुद्रों का ज्ञान होने से लेकर उनके लोग प्रवचनों से जुड़ते थे। वे लोग अपनापन महसूस करते थे। उनकी प्रवचन की पुस्तक कहीं भी पढ़ें लो, आपको लगेगा कि यह घटना आज मेरे साथ घट रही है। स्थानीय मराठी जनता को जैन धर्म की समझ आ गई, इसलिए मेरी भावना की पुस्तक पढ़ने के लिए दी गई।
उन्होंने कहा कि लोगों को जैन धर्म की शिक्षा देना उनका लक्ष्य था। जैन समाज में परीक्षा के माध्यम से ज्ञान जगाने का पहला प्रयास उन्होंने शुरू किया। 1936 में शुरू हुआ यह पाठ्यक्रम किसी भी समुदाय, धारणा या परंपरा को प्रभावित नहीं करता था बल्कि केवल जैन धर्म के अनुसार रहता था। उनका पाठ्यक्रम पाकिस्तान में भी पढ़ा गया था। आज हमें यही प्रेरणा लेनी है कि हम ज्ञान को ग्रहण करने का उद्देश्य और अध्ययन में सहायक उपकरण लेंगे। युवाओं के अनुयायी धर्मीचंद सिंघवी ने जानकारी देते हुए बताया कि गुरुवार को नवकार मंत्र जप के अतिथि रुकमादेवी इंदरचंद कोठारी परिवार थे। इस दौरान अरकोणम में आनंद महिला मंडल की सदस्याएं युवााचार्य के दर्शनार्थ एवं विंदर्थ आश्रम में स्थित थीं

 उक्ताशय की जानकारी प्रवक्ता सुनील चपलोत ने दी 

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