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जैन साध्वी विनीत प्रज्ञा ने कहा अहंकार छोड़ो प्रेम अपनाएं अभिमान से हजारों साल की साधना भी निष्फल हो जाती है - Jinshashansandesh
December 23, 2024

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जैन साध्वी विनीत प्रज्ञा ने कहा अहंकार छोड़ो प्रेम अपनाएं अभिमान से हजारों साल की साधना भी निष्फल हो जाती है

आमेट के जैन स्थानक मे
जैन साध्वी विनीत प्रज्ञा ने कहा
अहंकार छोड़ो प्रेम अपनाएं अभिमान से हजारों साल की साधना भी निष्फल हो जाती है

और प्रेम वात्सल्य से नौ दिन की साधना भी आत्मकल्याण का कारक बन जाती है। अभिमान को हटा कर जीवन में प्रेम को जाग्रत करने से ही मानव का उद्धार हैबड़े पुण्य से हमें मानव जीवन मिला इसे अहंकार के आवरण से व्यर्थ न गंवाएं। समाज में प्रेम होगा तो समाज उन्नति करेगा। अहंकार होगा तो समाज टूट जाएगा। हमेंं समाज व संघ को जोडऩे का काम करना चाहिए तोडऩे का नहीं।मैं बड़ा हूं, मैं सुंदर हूं, मैं सबसे योग्य हूं, मैं सबसे ईमानदार हूं, सभी लोग मेरा बहुत आदर करते हैं, सभी मुझसे डरते हैं, सभी मुझे पसंद करते हैं, मेरी योग्यता के कारण लोग मुझसे ईर्ष्या करते हैं
इस प्रकार के सभी भाव अहंकार को ही दर्शाते हैं। जब हम केवल अपने और अपने ही बारे में सोचते हैं तो दूसरों के बारे में सोचने का प्रश्न ही नहीं उठता। वह अहंकार के ही भाव है

साध्वी चन्दन बाला ने कहा

कीअंहकार का त्याग करके मन में कोमल भाव रखना ही मार्दव धर्म है। अहंकारी कभी भी पराक्रमी एवं बलशाली नहीं हो सकता है। उसे कभी कभी पराजय अवश्य होता है। हृदय भी भावनाओं को सदैव बढा़ना चाहिए। मन की पवित्रता ही अहंकार को कहीं भी स्थान नहीं देती है। वाणी की पवित्रता संबंधो को जोड़ती हैअहंकार सलाह लेने से डरता है। अहंकार अपनी उलझन खुद ही सुलझा लेना चाहता है। यह भी स्वीकार करने में कि मैं उलझा हूं, अहंकार को चोट लगती है। अहंकार गुरु के पास इसीलिए नहीं जा सकता है। और मजा यह है कि तुम्हारी सारी उलझन अहंकार से पैदा होती है और तुम उसी से सुलझाने की कोशिश करते हो। सुलझाने में और उलझ जाते हो। उलझोगे ही, क्योंकि अहंकार उलझाने का सूत्र है, सुलझाने का नहीं।

साध्वी आनन्द प्रभा ने कहा

एक बात सबसे पहले समझ लेनी जरूरी है- अपने भीतर सदा खोजना, किसके कारण उलझन है और तब कुछ विपरीत की तरफ जाना, वहां से सुलझाव आ सकेगा। अहंकार उलझन है, समर्पण सुलझाव होगा। अहंकार ने रोग निर्मित किया है; समर्पण से मिटेगा। इसलिए तो समस्त शास्त्रों ने, समस्त परंपराओं ने समर्पण की महिमा गायी है। समर्पण का अर्थ है ‘मैं नहीं सुलझा पाता हूं अपने को, और उलझाए चला जाता हूं’ तो अब मैं अपने को छोड़ता हूं और अपने से बाहर, अपने से विपरीत से सलाह मांगता हूं।अहंकार पूर्ण नहीं होना चाहता, क्योंकि एक बार तुम पूर्ण हो जाओ तो अहंकार नहीं रह सकता। अहंकार केवल तभी होता है तब तुम विभाजित होते हो। जब तुम स्वयं से लड़ रहे होते हो, तभी अहंकार का आस्तित्व होता है
इस धर्म सभा का संचालन ललित जी डांगी ने किया और कहा की कल शुक्रवार को पद्मावती जाप, एकासणा दिवस श्री मान भवर लाल जी सरणोत् के द्वारा रखा गई है आप सभी इस जाप अनुष्ठान में अवश्य भाग ले 
बाहर से आए हुए अतिथि गण का स्वागत सत्कार श्री संघ ने शाल माला पहनाकर किया!!

 

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