समतायोगी उप-प्रवर्तक स्वामी जी श्री ब्रजलाल जी महाराज का जन्म तिंवरी ग्राम में वसंत पंचमी, विक्रम संवत 1958 को हुआ था। आपके पिता जी श्री अमोलकचंद जी श्रीश्रीमाल और माता जी श्री चंपाबाई थीं ।
अल्पवर्षा में इन्होंने उच्च वैराग्य के साथ वैशाख शुक्ल 12, विक्रम संवत 1971 को स्वामी जी श्री जोरावरमल जी महाराज के पास ब्यावर में दीक्षा ग्रहण की। निष्काम सेवा भावना आपका विशिष्ट गुण था । दूसरों की पीड़ा आपको स्वयं की पीड़ा लगती थी और आप तुरंत अन्य संतों की पीड़ा – वेदना दूर करने में तत्पर हो जाते थे । आपकी हस्तलिपि अतिसुन्दर थी तो आपकी कंठकला अतिमधुर थी । मधुर स्वर, निश्चल व्यवहार, सरलता और संयम पथ पर अडिगता से चलना आपके सहज गुण थे । आपने आगमों का और ज्योतिष विद्या का गहन अध्ययन किया है। अनेकानेक गुणों के बावजूद आप यश – नाम – कीर्ति की भावना से कोसों दूर थे ।
स्वामी जी श्री हजारीमल जी महाराज के देवलोकगमन के पश्चात श्री मधुकर मुनि जी महाराज की साहित्य साधना में आप अनन्यतम सहयोगी और प्रेरक रहे। आपके पिता तुल्य वात्सल्य, सही संतुलित निर्णय और साथी के रूप में सम्पूर्ण सहयोग युवाचार्य श्री मधुकर मुनि जी के लिए सदा स्पृहणीय और समादरनीय रहा।
श्रमण संघ को मजबूत बनाने के लिए आचार्य श्री आनंदऋषि जी और युवाचार्य श्री मधुकर मुनि जी ने संयुक्त चातुर्मास के लिए 81 वर्ष की वृद्धावस्था में भी नासिक की ओर उग्र विहार किया। पर विधि को कुछ और ही स्वीकार किया गया था । अचानक रास्ते में धूलिया में आपका स्वास्थ्य कमजोर हो गया। आषाढ़ कृष्ण 8, विक्रम संवत 2040 को हमारे समता भाव से संथारा सहित देह त्याग दिया गया। श्रमण संघ के लिए आपने अपने प्राणों का त्याग कर दिया। जिनशासन की एक अपूर्व ज्योत अनंत में विलीन हो।
आचार्य श्री आनंदऋषि जी महाराज ने आपको श्रमण संघ का महर्षि दधीचि उद्बोधन देकर श्रद्धांजलि अर्पित की। ज्ञात रहे – आपके देवलोकगमन के पश्चात जीवन भर आपकी छाया समान रहे युवाचार्य मधुकर मुनि जी महाराज भी आचार्य आनंद ऋषि जी महाराज के साथ नासिक में ऐतिहासिक चातुर्मास पूर्ण कर 5 महीने बाद अपने गुरुभ्राता के समीप चल दिये । श्रमण संघ में आपके जैसे राम-लक्ष्मण की जोड़ी विरली ही है।
महासती डॉ श्री सुप्रभा जी म. सा. “सुधा”
साभार – अर्चना अभिनंदन ग्रंथ
संकलन – संजीव कुमार नाहटा