सोच सकारात्मक होगी तो मुश्किले भी हो जाएगी आसान-मुकेशमुनिजी म.सा
हमारा मन दुःख और सुख का उद्गम स्थल, जैसा होंगा मन वैसी अनुभूति- सचिनमुनिजी म.सा.
अम्बाजी के अंबिका जैन भवन में चातुर्मासिक प्रवचन
अम्बाजी, 1 अगस्त। आत्मकल्याण के लिए दुनिया में बाहर कुछ भी नहीं है जो कुछ है हमारे भीतर है लेकिन हम बाहर भटकते रहते है। बाहर भटकने से ही समस्याएं उत्पन्न होती है। समस्याओं का समाधान हमारे भीतर मिलेगा लेकिन हम उन्हें बाहर खोजते रहते है। हमारी सोच ही हमारी समस्याओं को सुलझा या उलझा सकती है। सोच सकारात्मक होगी तो मुश्किल समस्या भी आसानी से सुलझ जाएगी। नकारात्मक सोच सामान्य समस्या को भी जटिल बना देती है। ये विचार पूज्य दादा गुरूदेव मरूधर केसरी मिश्रीमलजी म.सा., लोकमान्य संत, शेरे राजस्थान, वरिष्ठ प्रवर्तक पूज्य गुरूदेव श्रीरूपचंदजी म.सा. के शिष्य, मरूधरा भूषण, शासन गौरव, प्रवर्तक पूज्य गुरूदेव श्री सुकन मुनिजी म.सा. के आज्ञानुवर्ती युवा तपस्वी श्री मुकेश मुनिजी म.सा ने गुरूवार को श्री अरिहन्त जैन श्रावक संघ अम्बाजी के तत्वावधान में अंबिका जैन भवन आयोजित चातुर्मासिक प्रवचन में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि जीवन में आत्मीय आनंद की अनुभूति करने के लिए खुद को पहचानना होगा ओर अपने भीतर झांकना होगा। व्यक्ति में अनंत शक्ति है ओर यदि वह अपनी शक्ति को पहचान लेता है तो हर समस्या का समाधान कर सकता है। धर्मसभा में सेवारत्न श्री हरीश मुनिजी म.सा. ने कहा कि मानव जीवन कच्चे घड़े के समान है कब फूट जाए पता ही नहीं चलता। इसलिए जीवन में शुभ कार्य करने में कभी प्रमाद नहीं करना चाहिए। जिसने प्रमादरहित होकर शुभ कर्म किए उसने अपना जीवन सफल बना लिया। जीवन में जन्म, बचपन, जवानी, बुढापा व मृत्यु पांच अहम भाग होते है। इनको समझ उसी अनुरूप जीवन जीना चाहिए एवं धर्म कार्य करते रहने चाहिए। उन्होंने जैन रामायण के विभिन्न प्रसंगों का भी वर्णन किया। धर्मसभा में मधुर व्याख्यानी श्री हितेश मुनिजी म.सा. ने कहा कि व्यक्ति के जीवन में सुख दुःख आते जाते है। स्वभाव व अभाव इनका कारण होता है। व्यक्ति स्वभाव में कम ओर अभाव में ज्यादा जीता है। वह जो उसके पास है उनका आनंद लेने की बजाय जो नहीं है उसे लेकर दुःखी रहता है। व्यक्ति अभाव छोड़कर स्वभाव में जीना सीख ले तो जीवन की दशा बदल जाएगी। हमारे पास जो है उसमें संतोष रखना सीखे क्योंकि संतोष से बड़ा कोई धन नहीं होता है। संतोष रखने वाला व्यक्ति दुख में भी सुख की तरह रह सकता है। उन्होंने सुखविपाक सूत्र के तीसरे अध्ययन सुजातकुमार का वाचन करते हुए बताया कि किस तरह उनकी आत्मा केवलज्ञान प्राप्त करने के बाद निर्वाण होकर सिद्ध बुद्ध मुक्त हो जाती है। धर्मसभा में प्रार्थनार्थी श्री सचिनमुनिजी म.सा. ने कहा कि दुःख का पहला कारण अपनी आकांक्षा है। दुःख कहीं बाहर से नहीं आता, वह अपनी आकांक्षा, कामना इच्छा से आता है, वह अपनी लालसा से आता है, वह अपने मन से आता है,पहले किये हुए पाप के फल से भी आता है। उन्होंने कहा कि दुःख और सुख का उद्गम स्थल भी अपना मन है। जहाँ मन शान्त हुआ, वहीं सुख का अमृत स्रोत फूट पड़ता है। जहाँ इच्छाएँ, वासनाएँ मरी, वहीं आनन्द हिलोरे मारने लगता है। जहाँ आकांक्षा-तृष्णा का दहन हुआ, वहीं सुख का झरना फूट पड़ता है। सुख का खजाना धन, सत्ता व पदार्थों में नहीं, सत्य आत्मा में है। सच्चा परम सुख तो आत्मा में है ।
धर्मसभा में युवारत्न श्री नानेशमुनिजी म.सा. का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। धर्मसभा में कई श्रावक-श्राविकाओं ने आयम्बिल, एकासन, उपवास तप के प्रत्याख्यान भी लिए। अतिथियों का स्वागत श्रीसंघ के द्वारा किया गया। धर्मसभा का संचालन गौतमकुमार बाफना ने किया। चातुर्मासिक नियमित प्रवचन सुबह 9 से 10 बजे तक हो रहे है।
गुरूदेव जयंति समारोह के उपलक्ष्य में होगा सामूहिक तेला तप
चातुर्मास के विशेष आकर्षण के रूप में 15 अगस्त को द्वय गुरूदेव श्रमण सूर्य मरूधर केसरी प्रवर्तक पूज्य श्री मिश्रीमलजी म.सा. की 134वीं जन्मजयंति एवं लोकमान्य संत शेरे राजस्थान वरिष्ठ प्रवर्तक श्री रूपचंदजी म.सा. ‘रजत’ की 97वीं जन्म जयंति समारोह मनाया जाएगा। इससे पूर्व इसके उपलक्ष्य में 11 से 13 अगस्त तक सामूहिक तेला तप का आयोजन भी होगा। चातुर्मास अवधि में प्रतिदिन दोपहर 2 से 4 बजे तक का समय धर्मचर्चा के लिए तय है। प्रति रविवार को दोपहर 2.30 से 4 बजे तक धार्मिक प्रतियोगिता हो रही है।