आमेट के स्थानक भवन में आयोजित आध्यात्मिक प्रवचन श्रृंखला
शास्त्रों में कहा गया है कि जो व्यक्ति जैसा कर्म करता है उसे वैसा ही फल प्राप्त होती है। माना जाता है कि जो व्यक्ति के कर्मों के आधार पर अपना जीवन व्यतीत करता है, उसे जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता प्राप्त होती है। ऐसे में यह कहा जाता सकता है कि व्यक्ति का भविष्य उसके कर्म के आधार पर ही तय होता है।गीता के एक अन्य श्लोक में श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन से कहा गया है कि तेरा अधिकार केवल कर्म पर ही है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए तू कर्म के फल के प्रति आसक्त न हो या कर्म न करने के प्रति प्रेरित न हो।” अर्थात व्यक्ति केवल अपने कर्म पर ही नियंत्रण कर सकता है, उस कर्म से क्या फल प्राप्त होगा, यह व्यक्ति के हाथ में नहीं है। ऐसे में व्यक्ति को फल की चिंता किए बिना केवल अपने कर्म पर ध्यान देना चाहिए।कर्मों का भुगतान करने में देर हो सकती है पर अंधेर नहीं। जैन धर्म पूरा कर्म सिद्धांत के ऊपर ही टिका हुआ है । जीव जैसा कर्म करता हैं वैसा ही भोगता है। हम लोग नौ प्रकार से पुण्य का बंध कर सकते हैं।
साध्वी विनीत प्रज्ञा ने कहा
ज्ञानावरणीय कर्म अर्थात् ज्ञान को आवृत करने वाला कर्म। जिस कर्म के कारण आत्मा सहज रूप से ज्ञान की प्राप्ति नहीं कर पाती वह ज्ञानावरणीय कर्म है। आत्मा में सब कुछ जानने की शक्ति होते हुए भी ज्ञानावरणीय कर्म के कारण वह जान नहीं पाती। यह कर्म आत्मा के ज्ञान को उसी प्रकार ढक देता है जिस प्रकार बादल सूर्य के प्रकाश को ढक देते हैं।
ज्ञानावरणीय कर्म को आँखों पर बंधी पट्टी के समान भी कहा जा सकता है। जैसे किसी व्यक्ति की आँख पर अनेक पट वाली कपड़े की पट्टी बाँध दी जाए तो वह आँख होते हुए भी देख नहीं पाता। आँखों की पट्टी ज्यों-ज्यों खुलती जाती है, त्यों-त्यों दृश्य का ज्ञान उत्तरोतर स्पष्ट होता जाता है। इसी प्रकार आत्मा भी अनंत ज्ञान से सम्पन्न है, फिर भी संसारी आत्मा के ज्ञानचक्षु पर कर्म की पट्टी बंधी होने के कारण जगत के पदार्थों को वह सम्यक् रूप से नहीं जान पाती। ज्यों-ज्यों ज्ञानावरण कर्म हटता जाता है, त्यों-त्यों व्यक्ति का ज्ञान बढ़ता जाता है। ज्ञान पर आया हुआ सम्पूर्ण आवरण हट जाने पर व्यक्ति को सारे विश्व का त्रैकालिक ज्ञान अर्थात् केवलज्ञान हो जाता है।
साध्वी चन्दन बाला ने कहा
आप धैर्यशील बनें कोई दो कड़वे शब्द कह दे तो क्रोधित ना हो। टेंशन न पाले क्योंकि पत्थर उसी पेड़ को मारे जाते हैं जिस पर मीठे फल लगते हैं। आपके अंदर कुछ तो खास है इसलिए तो दुनिया की नजर आपके ऊपर है। इसीलिए तो आप के कार्यो की निदा और आलोचना हो रही है। किसी के बुरा कहने पर आप अपने आप को बुरा कभी न मानें। जब आपका मन आपको आरोपित न माने। दिमाग झूठ बोल सकता है मगर दिल हमेशा सत्य बोलता है। दुनिया की सबसे बड़ी अदालत आपका स्वयं का दिल है। इसीलिए जिदगी के महत्वपूर्ण फैसले दिमाग से नहीं दिल से लें जिससे मंजिल प्राप्त करने में आपको आसानी होगी। धर्म का संचालन ललित डांगी ने किया महिला मण्डल ने आज पद्मावती के जाप अनुष्ठान का लाभ लिया एकसाना लाभ भंवरलाल जी सरणोत ने लिया बाहर से आये हुए अतिथिगण का स्वागत श्री संघ ने शाल माला से किया