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आमेट के जैन स्थानक मे चातुर्मास विराजित तपाचार्य श्री जयमालाजी महाराज के शुभ सानिध्य में

साध्वी डॉ चन्द्र प्रभा ने कहा
की छल प्रपंच और कपट से दूर रहें

प्राणी का जीवन सरल होना चाहिए। कपटपूर्ण व्यवहार से धोखा, हिंसा जैसी बुराइयों का जन्म होता है।निश्छल व्यक्ति कभी भी दूसरे से छल नहीं करता। बेईमानी की प्रवृत्ति से अनाचार फैलता है।
जैन धर्म में अरहंत देव ने कहा कि मन बचन काय (शरीर) से एक होना उत्तम आर्जव धर्म है। कपट या छलावा करने वाला दुख को भोगता है। सुखी रहने के लिए उत्तम आर्जव धर्म का पालन जरूरी है।जहां छल और कपट जीवन में आया, वहां चाहे सांसारिक मित्रता हो या आध्यात्मिक मित्रता, वो टिक नहीं सकती। भगवान महावीर ने कहा-मित्रता में भेद नहीं होना चाहिए, कपट नहीं होना चाहिए

साध्वी आनन्द प्रभाने कहा

कपट रहित प्रभु का कीर्तन करना चतुर्थ भक्ति है। ये नहीं कि मुंह में राम-राम और बगल में छुरी। बाहर कुछ अंदर कुछ। ये भक्ति की रीत नहीं। उन्होंने बताया कि भक्ति में बिल्कुल सरल बन जाओ-बच्चे की तरह। जो बाहर हो, वो अंदर हो। संत तुलसी ने बहुत सुंदर उपमा दी- मन मलीन, तन निर्मल ऐसे, विष भरा कनक घट जैसे।
घड़ा तो सोने का है, पर उसमें जहर भरा है। ऐसे ही ये शरीर रूपी सोने का घड़ा भी बेकार है, जब तक इसमें छल कपट का जहर भरा है और आत्मा रूपी दर्पण पर कपट का पर्दा छाया रहेगा, तब तक आत्म स्वरूप के दर्शन नहीं होंगे।

साध्वी विनीत प्रज्ञा ने कहा

जब तक माया का भ्रम छाया रहेगा, ब्रह्म तब तक दूर रहेगा। माया का भ्रम दूर हुआ तो मानव स्वयं ब्रह्म बन जाएगा।। भाई- सत्संग में आ जाया कर। महाराज जी-फुर्सत ही नहीं। भाई जप सिमरण कर लिया कर। महाराज! मन ही नहीं टिकता। भाई दान-पुण्य कर लिया कर। खा लिया रोज-रोज इन चंदे वालों ने। बस हो गया तन-मन-धन। इसलिए हे मानव भक्ति करो तो निष्कंटक होकर करो।
छल-कपट को माया कहते हैं अर्थात मन में कुछ और हो, वचनों से कुछ और कहना तथा काया से कुछ और ही करना, इसका नाम है मायाजाल या मायाचार। यह मायाचार दुर्गति का द्वार है, संसार में फंसाने का जाल है, स्वभावगुण जलाने को आग है, इसलिये हमें माया का त्याग करना हैं
धर्म सभा का सचलान ललित जी डांगी ने किया और 4 तारीख को मित्र दिवस पर जाप रखा गया अधिक अधिक भाग ले और जाने मित्र किसे बनाना चाहिए सच्चा मित्र कौन है इस पर साध्वी श्री का प्रवचन रहेगा अधिक से अधिक इस मे भाग ले,

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