250 से अधिक साधक साध संगत ने आज एक साथ मिलकर आयम्बिल तापा की 75वीं जयंती के अवसर पर सकल श्वेताम्बर जैन समाज के महोत्सव का आयोजन किया। इस समारोह में शामिल हुए
आज से 75 वर्ष पूर्व ऐसी साधना और साध्य दुर्ग शहर में प्रारंभ हुई थी जो आज तक हर्ष और उल्लास के वातावरण में निर्वत गति से चल रही है आज जय आनंद मधुकर रत्न भवन के शिष्य आयम्बिल की 75वीं जयंती सुमंगल प्रभा जी के मंगल पाठ के साथ शुरू हुआ
आयंबिल 75वीं वर्षगांठ के स्मारक पर 1 ग्राम के 3 सोने के सिक्के और 75 चांदी के सिक्के आज से 75 वर्ष पूर्व सन 1949 में श्री प्रेमराज जी श्रीश्रीमाल ने यह तप दुर्ग शहर में शुरू किया था और प्रतिदिन श्वेतांबर जैन समाज के घर में प्रतिदिन आयबिल निवि उपवास एकासन की थेली जेन परिवार के माह में एक बार धारण किया गया था जिस घर में यह हथियार था उसके घर के एक सदस्य ने उसे दिन में टेप की साज-सजावत दी
आयंबिल की 75वीं जयंती श्री हर्षित मुनि जी श्री कल्पज्ञय सागर जी श्री सुमंगल प्रभा जी म.सा. आदि ठाणा श्री हेम प्रभा जी श्री दर्शनप्रभा श्री जी सहित सभी साधु संत समुदाय का सानिध्य एवं आशीर्वाद प्राप्त आज के इस तप महोत्सव में 250 से अधिक साधु साधु आचार्य ने श्रमण संघ स्वाध्याय मंडल एवं श्रमण संघ महिला मंडल के सदस्यों ने इस तप महोत्सव में भाग लिया भाग लिया अपनी दुकान में आज के आयम्बिल टेप में चांदी के सोने के सिक्के के अतिथि परिवार श्रीपाल हरीश कुमार आनंद कुमार अमित श्रीश्रीमाल परिवार थे
आयंबिल टैप क्या होता है केसा खान पैन क्या होता है आइए हम जानते हैं
महावीर ने हमें तपस्या के भगवान के कई मार्ग बताए हैं। जैसे नवकारसी, पोरसी, बियासना, एकासना, उपवास आदि। अयंबिल नीन से एक है। आयंबिल में सभी द्रव्य याने दूध, दही, घी, तेल, शर्करा आदि सभी का त्याग किया जाता है। आयंबिल में नमक का भी त्याग होता है। आयंबिल की तपस्या रसनेद्रिंय पर विजय प्राप्त करने के लिए करें। अपने पेट के लिए एक जगह पर दिन में सिर्फ एक बार लूखा-सुखा आहार लें। समभाव की साधना यही आयम्बिल ओली का हितो है। लगभग चैत्र शुक्ल सप्तमी से चैत्र शुक्ल पूर्णिमा तक अयंबिल ओली की छुट्टियाँ हैं। श्रीपाल-मैना ने यह तपस्या की थी और तब से यह आयम्बिल ओली की शुरुआत हुई।
आयम्बिल एक टैप है। दिन में एक बार का खाना एक जैसा होता है लेकिन खाने में बहुत ही मर्यादित होता है जैसे दूध, दही, घी, तेल, किसी भी प्रकार की मिठाई, गुड़, शकर, मिर्च, हल्दी, धनिया, कोई भी हरी सब्जी और फल, मीठा मेवे आदि वस्तु का पूर्ण त्याग होता है।
आयम्बिल में सिर्फ अनाज और दालों को पकाकर केवल बिना नमक, काली मिर्च और हींग के साथ सिर्फ मसाले वाले पानी के साथ यह सूखा भोजन सुख दिवस में सिर्फ एक बार मध्याह्न के बंद किया जाता है।
यह भोजन मनुष्य की जीभ का लालसा, जीभ का स्वादिष्ट भोजन करने की आदत को तोड़ने के लिए किया जाता है।